Wednesday, March 13, 2024

دیا ہے کسی نے یہ جھٹکا کسی سے کچھ نہیں کہت




                     غزل
دیا ہے کسی نے یہ جھٹکا کسی سے  کچھ نہیں کہتے
 کہاں لا    کر   ہمیں  پٹکا کسی سے کچھ نہیں کہتے

اکیلا    چھوڑ    کر    چھمو کو  باہر  جا نہیں  سکتے
 لگا رہتاہے اک کھٹکا  کسی   سے  کچھ   نہیں   کہتے

 توے سا رنگ ہے  موٹی ہے  آنکھیں چھوٹی چھوٹی ہیں

  کہاں جاکر   یہ   دل اٹکا  کسی سے کچھ نہیں کہتے

  گلے میں    جم  گیا تھا     تھوک۔   اس نے جب ہمیں ڈانٹا 

بڑی مشکل سے ہے سٹکا کسی سے کچھ نہیں کہتے

 سبھی کے  ہاتھ۔  کے    پتھر ہمارے   سر  کی جانب ہیں

 سمجھتے ہیں اسے  مٹکا   کسی سے   کچھ نہیں    کہتے

 حسینہ کی گرفتاری   میں گم   ہیں آج تک یارو

 وہ تھا کس شوخ کا لٹکا کسی سے کچھ نہیں کہتے

بجے ہیں   سات  ابھی    تو  شام کے اپنی پڑوسن کے

 ابھی سے چھاج کیوں پھٹکا کسی سے کچھ نہیں کہتے

 وہ     ہم۔   سے   راستے میں پوچھتا ہے کب ملو گے  تم

  تمباکو   ہم۔  نے  جب   غٹکا کسی سے کچھ نہیں کہتے

                          ‌‌۔ ‌     غزل۔             


وہ    کہہ    رہے   ہیں  ذرا   ہم   سدھر  کے دیکھتے ہیں 

تو ہم بھی نقل چلو انکی کر کے دیکھتے ہیں

  جب  آئینے  میں وہ خود کو سنور کے دیکھتے ہیں

   سہم  سہم  کے  انھیں لوگ گھر کے   دیکھتے  ہیں

   ہم اسکی پیٹھ پہ جب ہاتھ دھر کے دیکھتے ہیں 

ہمیں تو چاند ستارے بھی ڈر کے دیکھتے ہی

نہ جانے کون سی شے ان میں اب بھی باقی ہے

کہ چوہے روز انہیں کو کتر کے دیکھتے ہیں


ہماری     حد     سے      زیادہ   ہے     آن کی    گولائی 

کبھی جو جسم کو ہاتھوں میں بھر کے دیکھتے ہیں 

 سنا۔  ہے   بچوں   کو   نیندوں  میں  خوف  آتا ‌  ہے


 کہ     والدین     اگر    آنکھ۔  بھر   کے  دیکھتے ہیں


 سنا       ہے      ایسے     سبھی  اسپتال   جاتے ہیں


جو   لوگ   اسکی   گلی   سے  گزر کے  دیکھتے ہیں


سنا     ہے    رنگ    تووں    سے   چرا   کے   لایا  ہے


ہم  اس کے  ہاتھوں میں  آینہ دھر  کے دیکھتے ہیں


یہ  کون   کشتیاں     بھارت   میں    لڑنے   آیا  ہے

کہ    لوگ    راہ  میں  اسکو  ٹھہر کے دیکھتے ہیں


ہم۔    اسکی    یاد  میں   ہر  چیز بھول جاتے  ہیں

ہر۔  ایک۔  کام   کو    دوبارہ    کر کے  دیکھتے ہیں

سنا ہے چور لفنگے ادھر نہیں جاتے

گلی میں اسکی سو ہم بھی ٹھہر کے دیکھتے ہیں


 ہم اسکی پیٹھ پہ جب ہاتھ دھر کے دیکھتے ہیں

ہمیں تو چاند ستارے بھی ڈر کے دیکھتے ہیں

یہ    اسکے   سینے    پہ   تربوز   رکھ دیا  کس نے

کہ بار  بار    ندیدے     نظر  کے    دیکھتے     ہیں

کسی  کو  حسن  سے مارا  کسی  کو جلوؤں  سے

تمام    زاویے       ان    کے     ہنر کے  دیکھتے ہیں

سنا    ہے     ناک  ہے   اسکی  بڑے  پکوڑے  سی
بھکاری  منہ میں  اسے  لار بھر کے دیکھتے ہیں

سنا   ہے   مکھیوں  کو  عشق  ہے بہت اس سے

مٹھائی   والے  اسی  کو  ٹھہر کے دیکھتے ہیں

Sunday, February 25, 2024

mushaira DCN

https://www.youtube.com/live/JTLSAAlKNDQ?si=NrR3rREiHg7Awl8K

Sunday, May 7, 2023

پاپولر میرٹھی اکبر الہ آبادی کی نظر میں

             पापुलर मेरठी  

अकबर इलाहाबादी  की नजर में

मेने   अकबर  की  रुह  से  ये कहा
ए   जरीफाना   शायरी    के   इमाम
इंडिया   में  है  एक    तंज़     निगार
पापुलर   मेरठी   है जिस   का  नाम
उसके  बारे  में क्या  है  आपकी राए
आपको    है पसन्द   उसका  कलाम
कहा  अकबर  ने‌ ए   मिज़ाज   निगर
अब   नहीं  तंज़   में   कोई     पैगाम
पॉपुलर   को    सुना    है    मैंने   भी 
है   यहां   खुलद  में  भी उसका नाम
हुर  ओ  गुलेमा है पॉपुलर   के   फैन
जिक्र रहता है उसका सुबह ओ शाम
पॉपुलर   की   अदायगी    का   हुनर 
 नहीं  सब  शायरों के बस  का   काम
वो  जो   आवाज     को    बदलता है 
ये भी उसका हुनर है  उस   पा  तमाम
 जोर  परफारमेंस   पर वो   कैसे   ना दें 
जब  है ‌  सामे    मुशायरा    में  आवाम
 नहीं   लिखता      मिजाह   वो    ‌‌  ऐसे
 जैसे     दाढ़ी       बनाते     हैं  हजजाम
नहीं     उसके     यहां  वो   फ़क्कड़ पन
 जो      ज़रफत   मे   आजकल हैं आम
 कद    में    उससे   बड़े   भी  हैं   शायर
लिखे    किस   तरह जाए    सबके  नाम
है।   बहुत     ही   तवील   ये  फहरीसत
 ये    कहानी  यहां    ना     होगी   तमाम 
वतन   ए    पाक     के    मिजह   निगार
 रखते    हैं     अपना  एक खास    मकाम
ये     जो    सैयद     जमीर     जाफरी    हैं
 है       मेरे    बाद  वो      तुम्हारे     इमाम 
पॉपुलर      उसका     जो    तखल्लुस   है 
एक     सदाकत    है    ये  भी  बे   इबहाम
नाम     हर     दिल   अजीज अगर  होता 
नहीं     होता     जहां   में   उसका    नाम 
नहीं      उसके       यहां     वो    उरयानी 
जो     जराफत     पे  अब है एक इल्ज़ाम
हक      तो    ये     है  के    उसके हुमर  में 
  नहीं          वल्गैरिटी     बराऐ      नाम
 उसका         तंजो       मिजह   शुसता है
उसको     नग   ना   कर     सका  हम्माम
औरतों      पे    वो     क्यों   करें     हमले 
वो   तो   बहनों    को  कहता  है   मादाम
सुनते       हैं      पॉपुलर  की  कोशिश  है 

वो रिसर्च  अब   करें   बा   हुस्न     तमाम
 काम        मुश्किल   है   पॉपुलर    साहब
नहीं        ये        रेस   ज़़हमत  यक  गाम
हम      ने  देखें    है    वो  भी  पी एच डी
जिन      से  तहकीक    हो   गई   बदनाम
  ऐसे       हर      डॉक्टर      से   अच्छा  है
 एक        कंपाउंडर    जो    है     गुमनाम
 ऐसी      तहकीक  पर      पीएचडी     से 
हो       गई       यूनिवर्सिटी        बदनाम 
ऐसी‌‌      ‌ तहकीक  पर       मौखि़क   को 
न   तो       खि़लत   मिले ना कुछ इल्जाम
ऐसी      तहकीक  पर     हों  तहकीकात  
ता के        निकले    अदब  में   माले हरा
 ऐसी          तहकीक   करने    वाले   को 
 कुछ  सजा  हो के जैसे हबसे       दवाम
उसको        यूं      कैद बा     मुशकत  हो
ना      ले    तहकीक     का कभी  वो नाम
पॉपुलर      है    पढ़ा     लिखा     शायर
जानता     है     वो जुर्म     का      अंजाम 
वक्त      हंसकर   गुजार     दे        अपना 
शायरी में     है      उसकी    ये     पैगाम 
हमें         उम्मीद    है       के       पॉपुलर 
वाकई        कर    दिखाएगा    कुछ काम

                                    

                                    दिलावर फिगर

                मेरे महबूब


अब तो पहली सी मेरी शोक तबयत ना रही
 जिससे फरमाइशें पूरी हों वो  दोलत ना रही
 जेब में गेसुवे रुखसार की कीमत ना रही 
इश्क़ फरमाने की  अब मुझको जिसारत ना रही
मुझसे पहली सी मोहब्बत मेरे महबूबा ना मांग

धूप में चलता हूं छाओं से मुझे रबत नहीं 

अब सुकूं बख्श हवाओं से मुझे रबत नहीं 

शोकेपरकेफ फ़जाओं से मुझे रबत नही

अब मोहब्बत की अदाओं से मुझे रबत नहीं
मुझसे पहली सी महोब्बत मेरे महबूब ना मांग

अब तेरी ख्वाहिशे कुरबत में कहा से लाऊ
अब चमकती हुई किस्मत में  कहां से लाऊं
जज़्बाऐ इश्क ओ मोहब्बत  में कहा से लाऊ
मुफलिसी घेरे है  दोलत में कहा से लाऊ

मुझसे पहली सी मोहब्बत मेरे महबूब ना मांग

मुसतकील  हुस्न परस्ती मेरी आदत भी नहीं 
ग़म का मारा हूं तमन्नाए हसरत भी नहीं 
सच तो ये है के  मुझे प्यार की फुर्सत भी नहीं 
 अब मुझे इश्क रचाने की ज़रुरत भी  नहीं

 मुझे पहली सी मोहब्बत मेरे महबूब ना मांग

और से और हुई जाती है दुनिया मेरी
 मिल गई ख़ाक में एक एक  तमन्ना मेरी 
वाकई ज़िंदादिली हो गई पसपा मेरी 
हर तरफ   चर्चा  है  अफसुरदा दिली
 का मेरी

  मुझसे पहली सी मोहब्बत मेरे महबूब ना मांग

तु गरीबी में मेरे साथ गुजारा कर ले
शिकवा करना है तो जी खोल के  शिकवा करले
तु रकीबो की  भरी बज़्म  में चर्चा  करले
  शौक से तर्क ए तालुक का इरादा करले
 

 मुझसे पहली सी मोहब्बत मेरे महबूब ना मांग

Saturday, May 6, 2023

मशवरा

‌                  मशवरा

                                   डॉ पापुलर मेरठी

जिंदगी की राह में बेकार रहना है गुनाह

 मुझसे अब देखा नहीं जाता तेरा हाले तबाह 

कोई बुजदिल का   नहीं होता जहां मैं खेरखुवाह

 मौत की वादी में खो जाना है रुसवाई की राह 

खुदकुशी के वास्ते तैयार क्यों है कुछ तो कर

 ऐ मेरे लख्ते जिगर बेकार   क्यों है कुछ तो कर 


तू बबूलो की कटीली शक़ पर बेले  लगा

 जंगली बूटी पे करके तबसरे मेले लगा

 कुछ ना बन पाए तो फिर बाजार में ठेले लगा

 संतरे या सेब या अंगूर या केले लगा

 जिंदगी की राह नाहमवार क्यों है कुछ तो कर


 ए मेरे लख्ते जिगर बेकार क्यों  कुछ  तो कर 


ये जता दे आपके बेकारी में तू है बेमिसाल 


 मार के  डिगें  दिखा दे बे कमाली का कमाल

 सबके ज़हनों पर बिठा दे हुस्ने मुस्तकबिल का जाल 


तू नजूमी बनके यारों को बता किस्मत का हाल


 इस कदर मायूस ना चार क्यों है कुछ तो कर

 ऐ मेरे लख्ते जिगर बेकार क्यों है कुछ तो कर


 हर मर्ज का सिर्फ है ताविज से मुमकिन इलाज 

देखिए जिसको भी सूफी जी का दीवाना है आज 

गरदिशे आयाम खुद अपना बदल देगी मिजाज 
 क्या अजब भर दे तेरा दामन  अकीदत का खिराज  

्मुफत में रुसवा सरेबाजार क्यों है कुछ तो कर


 ए मेरे लख्ते जिगर बेकार क्यों है कुछ तो कर 


ले के चले रोज़ाना  चंदे की रसीद  हाथ में 

तुम कहीं भी झोल  आने दे ना  अपनी बात में

 रोशनी की जब जरूरत हो अंधेरी रात में 

काम कुछ करने  से बेजार क्यों है कुछ तो कर

 ए मेरे लख्ते जिगर बेकार क्यों है कुछ तो कर

कौन कहता है कि तू यू मुफलिसी का ग़म उठा

बनके नेता कौमी य़कजहती का तू परचम उठा

नाज़ जनता का हर इक आलम  में तू पहम  उठा
रहबरी  का फायदा जाईद उठा या कम उठा
खुद ही  बर्बादी का जिम्मेदार क्यों है कुछ तो कर

 ऐ मेरे लख्ते जिगर बेकार क्यों है कुछ तो कर

   धूप से पीछा छुड़ा साए में आकर बैठ जा
 जिंदगी भर के लिए दौलत कमा कर बैठ जा

 बैंक से तू कर्ज ले ले और दबा कर बैठ जा 

या किसी जरदार के चूना लगाकर बैठ जा 

अपने दादा की तरह नादार  क्यों है कुछ तो कर

 ए मेरे लख्ते जिगर बेकार क्यों है कुछ तो कर

                                 डॉ पापुलर मेरठी